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रेड 2: ईमानदारी बनाम भ्रष्टाचार की जबरदस्त भिड़ंत!



ये एक तेज़-तर्रार एक्शनफिल्म नहीं है, बल्कि एक धीमी आग की तरह सुलगती कहानी है जो आख़िर में बड़ा धमाका करती है। 

Posted On:Thursday, May 1, 2025


डायरेक्टर - राज कुमार गुप्ता
राइटर - रितेश शाह, राज कुमार गुप्ता, जयदीप यादव, करण व्यास
कास्ट - अजय देवगन, रितेश देशमुख, वाणी कपूर, रजत कपूर, सौरभ शुक्ल, सुप्रिया पाठक, अमित सियाल
अवधि - 138 मिनटस

रेड 2 सिर्फ़ एक सीक्वल नहीं है, ये एक दमदार, धड़कनें तेज़ कर देने वाला सिनेमा है, जहाँ ईमानदारी और भ्रष्टाचार की टक्कर देखने लायक है।डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता इस बार एक और बड़ी रेड के साथ लौटे हैं, लेकिन इसमें सिर्फ़ दस्तावेज़ नहीं खंगाले जाते — यहाँ ज़ुबानें नहीं, आँखेंबोलती हैं, और खामोशी सबसे बड़ा हथियार बन जाती है। अजय देवगन एक बार फिर बने हैं आयकर अधिकारी अमय पटनायक — शांत, संयमितऔर बिल्कुल तलवार की धार की तरह तेज़। वो चिल्लाते नहीं, धमकाते नहीं — बस एक नजर मारते हैं और सामने वाला हिल जाता है।

लेकिन इस बार की सबसे बड़ी सरप्राइज हैं — रितेश देशमुख। जी हां, वही जो अब तक कॉमेडी और लाइट रोल्स में नज़र आते रहे हैं। लेकिन रेड 2 मेंउन्होंने एक ऐसा खलनायक निभाया है जो न चिल्लाता है, न हँसता है — बस घूरता है, सोचता है और अंदर ही अंदर प्लानिंग करता है। उनकी आँखोंमें जो ठंडापन है, वो किसी भी डायलॉग से ज़्यादा खतरनाक है। अजय और रितेश की भिड़ंत जैसे शतरंज का मुकाबला हो, जहाँ हर चाल चुपचाप,लेकिन जानलेवा होती है।

फिल्म का पहला हाफ थोड़ा धीमा है। यहाँ किरदार सेट किए जाते हैं, कुछ फालतू गाने भी डाले गए हैं (हाँ, वाणी कपूर वाला गाना थोड़ा जबरदस्तीलगता है)। लेकिन जैसे ही फिल्म सेकेंड हाफ में पहुंचती है — कहानी पकड़ लेती है और छोड़ती नहीं। टेंशन, थ्रिल और आमने-सामने के टकराव वालेसीन इतने दमदार हैं कि सीट छोड़ने का मन ही नहीं करता। फिल्म के दूसरे हिस्से में अमित सियाल की एंट्री होती है जो पूरी कहानी को और मजबूतीदेती है।

राजकुमार गुप्ता ने निर्देशन में बहुत संतुलन रखा है। बिना ज़्यादा ड्रामा किए, वो किरदारों की गंभीरता को उभरने देते हैं। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर भीबिल्कुल सटीक है — जहाँ ज़रूरी है वहाँ सस्पेंस बढ़ाता है, और टकराव के सीन में जान डाल देता है। डायलॉग्स खास तौर पर ज़ोरदार हैं, एकदमताली मारने लायक — खासकर अजय और रितेश के आमने-सामने के सीन में।

अब अगर कमियाँ गिनें, तो हाँ — पहला हाफ थोड़ा ढीला है, कुछ गाने ज़रूरत से ज़्यादा लगते हैं, और सौरभ शुक्ला जैसे शानदार एक्टर को पूरी तरहइस्तेमाल नहीं किया गया। लेकिन इन छोटी-छोटी बातों के बावजूद फिल्म अपनी पकड़ बनाए रखती है।

कुल मिलाकर, रेड 2 एक गंभीर, थ्रिल से भरपूर और शानदार अभिनय वाली फिल्म है, जो अपने वादे पर खरी उतरती है। ये एक तेज़-तर्रार एक्शनफिल्म नहीं है, बल्कि एक धीमी आग की तरह सुलगती कहानी है जो आख़िर में बड़ा धमाका करती है। अगर आपको ऐसी फिल्में पसंद हैं जहाँगोलियों से नहीं, लेकिन नज़रों और दिमाग़ी चालों से लड़ाई होती है — तो रेड 2 आपके लिए बनी है। अजय की खामोशी, रितेश की खतरनाक चुप्पीऔर दमदार टकराव के लिए इसे ज़रूर देखें। ये रेड सिर्फ़ फाइलें नहीं खोलती — ये किरदारों की परतें उधेड़ती है… और कहीं न कहीं, आपकीधड़कनों को भी।


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